क्या ऐसा हो सकता है”
तेरी हर शाम में वो दबी-दबी सी हंसी मेरी हो,
क्या ऐसा हो सकता है?
तेरी पहेली बारिश की नमी सिर्फ मेरी हो,
क्या ऐसा हो सकता है?
के जब तु सुबह उठे और मचल कर अंगड़ाई ले… और उन प्यारी सी बचकानी हरकतों मे, मेरी साजिश हो,
क्या ऐसा हो सकता है?
तेरे बालों को प्यार से, सेहलाते हुए वो फंसने वाली उंगलियां मेरी हो,
क्या ऐसा हो सकता है?
तु बिना बात के ही रुंठे, ओर ऐसी हरकतों पे तूझे चीडाने वाली हंसी मेरी हो,
क्या ऐसा हो सकता है?
हर ढलती शाम के साथ, आती यादों की वो लहरें मेरी हो,
क्या ऐसा हो सकता है..?
तु हर बार जब आनहे भरे, तब तेरी सांसों में सिर्फ मेरी ही कमी हो।
क्या ऐसा हो सकता है….?
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Bas mai hi mai aur koi na ho !
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